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मित्र / उषा उपाध्याय

3 bytes removed, 09:16, 7 मई 2011
है यूँ तो चंचल हर कोई रंग इस संसार के,
मृत्यु तलक हो साँस में ज़िसकी जिसकी महक, वह इत्र मिले ।
बाढ़ की उत्ताल लय में, बिजली कड़के, पाल टूटे राह में,
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