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घुलते हुए गलते हुए / केदारनाथ सिंह
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05:33, 12 मई 2011
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<Poem>
देखता
हू`म
हूँ
बूँदेंटप-टप गिरती
हुई
हुईं
भैंस की पीठ पर
भैंस मगर पानी में खड़ी संतुष्ट ।
अनिल जनविजय
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