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पीपल की छाँव / जगदीश व्योम
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07:36, 14 मई 2011
माना कि अंत हो गया है वसंत का
संभव है पतझर यही हो बस अंत का
सारंग न
ओेढ़ो
ओढ़ो
उदासी की चादर
लौटेगा मधुमास
फिर क्यों होता बटोही उदास
अब मत हो तू बटोही उदास
</poem>
डा० जगदीश व्योम
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