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12:40, 14 मई 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
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हर एक के सुख की परिभाषाएं अलग होती हैं,
सभ्यता का पाठ पढानें वाली पाठशालाएं अलग होती हैं।
अनुभव प्राप्त करने की कार्यशालाएं अलग होती हैं,
जो प्रेम में सराबोर कर दें,वे मधुशालाएं अलग होती हैं॥
कोई अध-छलकत गगरी बन इतराता है,
कोई आसमां को छूकर भी झुक जाता है।
कोई दूसरों को मिटा करके सुख पाता है,
कोई दूसरों को बसाने में मिट जाता है॥
कोई सुख-सुविधाओं में रम जाता है,
कोई दौलत कमाने में खट जाता है।
कोई आत्म्सम्मान लुटा करके कुछ पाता है,
कोई आत्म्सम्मान बचाने में मिट जाता है॥
कोई खुश है परिश्रम की रोटी कमाकर,
कोई खुश है हराम की कमाई पाकर।
कोई खुश है बैंक बैलेन्स बढाकर,
कोई खुश है अपनी पहचान बनाकर॥
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