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जानकी -मंगल/ तुलसीदास / पृष्ठ 8
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13:20, 14 मई 2011
एक कहहिं कुँवरू किसोर कुलिस कठोर सिव धनु है महा।
किमि लेहिं बाल मराल मंदर नृपहिं अस काहुँ न कहा।7।
</poem>
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Dr. ashok shukla
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