नरोत्तमदास के जीवन के विषय में कुछ विशेष ज्ञात नहीं है। शिवसिंह 'सरोज से पता चलता है कि ये बाडी नामक स्थान के रहने वाले कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनके ग्रंथों में एक 'सुदामा चरित ही उपलब्ध है, यद्यपि कहा जाता है कि इन्होंने 'ध्रुव चरित तथा 'विचारमाला ग्रंथ भी रचे थे। सुदामा चरित अत्यंत सरस, सरल, स्वाभाविक एवं भक्ति-भाव परिपूर्ण एक रोचक खंड-काव्य है। इसी ग्रंथ के बल पर नरोत्तमदास अक्षय कीर्ति के भागी हुए हैं।
'''महाकवि [[नरोत्तमदास ]] का कृतित्व'''
आलेख :- अशोक कुमार शुक्ला
हिन्दी साहित्य में ऐसे लोग विरले ही हैं जिन्होंने मात्र एक या दो रचनाओं के आधार पर हिन्दी साहित्य में अपना स्थान सुनिश्चित किया है। एक ऐसे ही कवि हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में जन्मे कवि [[नरोत्तमदास]], जिनका एकमात्र खण्ड-काव्य ‘सुदामा चरित’ (ब्रजभाषा में) मिलता है जो हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर मानी जाती है ।
पं0 गणेश बिहारी मिश्र की ‘मिश्रबंधु विनोद’ के अनुसार 1900 की खोज में इनकी कुछ अन्य रचनाओं ‘विचार माला’ तथा ‘ध्रुव-चरित’ और ‘नाम-संकीर्तन’ के संबंध में भी जानकारियाँ मिलते हैं परन्तु इस संबंध में अब तक प्रामाणिकता का अभाव है।
नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, की एक खोज रिपोर्ट में भी ‘विचारमाला’ व ‘नाम-संकीर्तन’ की अनुपलब्धता का वर्णन है। ‘ध्रुव-चरित’ आंशिक रूप से उपलब्ध है जिसके 28 छंद ‘रसवती’ पत्रिका में 1968 अंक में प्रकाशित हुए।
सिधौली पत्रकार संघ के अध्यक्ष श्री हरिदयाल अवस्थी ने [[नरोत्तमदास ]] की हस्तलिखित ‘सुदामा चरित’ के 9 पृष्ठ प्राप्त करने का भी दावा किया है परन्तु यह हस्तलिखित कृति लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति के पास काफी समय तक प्रामाणिकता की परीक्षण के लिए पडी रही, परन्तु निर्णय न हो सका।
‘शिव सिंह सरोज’ में सम्वत् 1602 तक इनके जीवित होने की बात कही गई है।