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14:59, 17 मई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
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उसे क्या फलसफा-ए-ज़ीस्त हो समझाने चले,
जिसे क़फसे-मुफ़्लिसी से न आज़ाद किया?
(फलसफा-ए-ज़ीस्त - जिंदगी का फलसफा, गहराईयों पे विचार; क़फसे-मुफ़्लिसी - गरीबी का पिंजरा)
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