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15:18, 17 मई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
|संग्रह=
}}
<poem>
यूँ रौशनी से बदगुमान न हो,
तू अंधेरों से छला जाएगा,
ये साया दो-पहर का साथी है,
रात होते ही चला जाएगा!
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आगोशे-शब में जो सुकून मय्यसर था हमें,
उजालों को सुबह के, वो भी गवारा न हुआ!
(आगोशे-शब - रात की गोद में; सुकून - आराम; मयस्सर - हासिल)
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(तल्ख़ी-ए-हयात - जिंदगी की कटुता / कड़वाहट)
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