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{{KKRachna
|रचनाकार=रेशमा हिंगोरानी
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}}
<poem>
मैं आदतन जो उसको याद करूँ,
वो आदतन ही भुलाये मुझको!

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होश में क्यूँ न तू नज़र आए?
जाम ही क्यूँ तेरी ख़बर लाए?

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कई चौराहों पे देखा है ये अक्सर मैंने,
ख़ुदा के हाथ में भी कासा-ए-दर्यूज़ागरी!

(कासा-ए-दर्यूज़ागरी - भीख मांगने का कटोरा - अक्सर लोग सड़क पर भगवान की तस्वीर या मूर्ती रख देते हैं और लोग वहाँ पैसा चढ़ा देते हैं, उसी से मक्सद है)

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न हो नाज़ाँ अपने हुस्न पे इतना, कि कभी,
तुझे भी आना पड़ेगा इसी मिट्टी के तले,
रवाँ रहेगा सदा वक़्त, और ये कारे-जहाँ,
मैं रहूँ या न रहूँ! और तू रहे न रहे!

(नाज़ाँ - मग़रूर; रवाँ - चलते रहना; कारे-जहाँ - ज़िन्दगी के काम-काज)

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