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|संग्रह=लौटा दो पगडंडियाँ / कुमार रवीन्द्र
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पगडंडियाँ कई किसिम की हैं, जो खो गई हैं । ये पगडंडियाँ हैं उन खुरदुरे स्नेहिल रिश्तों की, जो आदमी से आदमी को एक आत्मीय पुलक से जोड़ती हैं; ये पगडंडियाँ उस आन्तरिकता की हैं जो कविता बनती है । अंदर जो स्वाभाविक लय की एक सोंधी प्यास होती है, वही काव्य को महकाती है । ये पगडंडियाँ उस घनिष्ठ पारस्परिकता की हैं, जो हमारी अस्मिता की सही पहचान है । इस संकलन की कविताओं में इन सभी पगडंडियों को लौटने का आग्रह है । कम से इनका अभीष्ट तो यही है ।
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