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23:12, 20 मई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नवनीत पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>वह पहली बार नहीं
आज अंतिम बार मरी है
उसकी देह
नहीं होगी कभी
अब इस आंगन-घर में
अब नहीं सुनाई देगा कहीं
उसका मौन-गीत
अब नहीं छुएंगे उसके हाथ
कभी किसी के पांव
उसने नहीं देखी कभी
और न ही देखने आएगी
ड्राइंगरूम की दीवार पर टंगी
माला पहने अपनी बेपर्दा तस्वीर
उसने कल्पना भी नहीं की होगी
एक दिन सारे झूठ, सच बन जाएंगे
और सारे सच..
झूठ</poem>