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'''विकल्प की तलाश'''
वह आई
हथेलियाँ पसारे
गड़ा दी आँखें उसने
कार के डार्क शीशे पर
याचना में होंठ काँपे‘पेट भूखा है, सर!’
एक मन किया
दे दूँ दो-चार रूपयेरूपए हाथ खुद ख़ुद ब खुद ख़ुद सरक गया जेब की तरफतरफ़
तभी दूसरा विवेक जागा,
मत दो कुछ भी
नही तो भीख माँगते ही गुजारेगी गुज़ारेगी सारी ज़िन्दगी। ज़िन्दगी ।
मन किया पूछ लूँ
‘कुछ काम क्यों नहीं करती?चलेगी मेरे साथ?’पर मुहँ मुँह से न निकल सकी यह बात
क्योंकि डर था कि
उसमें छिपी हो सकती है
किन्हीं अनर्थों की सौगात!टचानक अचानक ग्रीन -सिगनल होते हीछिटक गई वह फुटपाथ की तरफतरफ़
उसके पास विकल्पों की तलाश का
इतना ही समय था
चौराहे पर लाल सिगनल के ग्रीन होने तक
मेरे पास भ भी उसके लिए सोचने का
इतना ही समय था शायद,
उसके सामने कोई विकल्प रखने से पहले ही
रोज़ वहाँ से बढ़ जाता था मैं आगे।आगे ।
घर की बेटी की तरह
बड़ी हो रही थी वह भी सड़क पर
बढ़ रही थीं उसकी जरूरतें ज़रूरतें भीपर सिकुड़ते जा रहे थे दिन-बदिन ब-दिन उसके विकल्प
उसके आस-पास ही देख रखे थे मैंने
भिक्षाटत ही उनके पास एकमात्र विकल्प था
क्योंकि इस देश के पास उनके लिए
कोई अन्य विकल्प तलाशने की फुरसत फ़ुरसत ही न थी।थी ।
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