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स्वाद / अनिल विभाकर

16 bytes added, 08:01, 22 मई 2011
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<Poem>
 मुझे उन आंखों आँखों में आंसू आँसू नहीं दिखने चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उन होंठों पर मुस्कान चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उस चेहरे पर उदासी नहीं, खुशी ख़ुशी चाहिए जो मुझे प्रिय है उस दिल में हताशा नहीं चाहिए जिसमें मैं रहता हूंहूँसागर की लहरों -सा प्यार हमेशा बुलंदियों की ओर ले जाता हैजिंदगी ज़िंदगी धरती पर तो होती है, देखती है हमेशा आसमान की ओर
आसमान में उड़ते हैं पंछी बिना धरती का सहारा लिए
यह नहीं कहता कि धरती जरूरी ज़रूरी नहीं
बिना आसमान के धरती भी बेकार है
आसमान में सूरज होता है
तारे होते हैं
चांद चाँद होता खूबसूरतख़ूबसूरत-सा बिल्कुल सोने जैसा
इन सब के बगैर सूनी हो जाएगी धरती
बिल्कुल ऊसर लगेगी रेगिस्तान की तरह
स्वाद के बगैर नहीं चलती जिंदगी ज़िंदगी
बिना किसी स्वाद के कैसे कटेगा यह पहाड़
पहाड़ नहीं पंछी बनने दो इसे।इसे ।</poem>
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