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<Poem>
ये तृण तेरे हैं कस्तूरीमृग!
ये तृण दिल में उपजे हैं
दिल की पूरी खुशबू ख़ुशबू और स्वाद है इनमें
पूरी गहराई है दिल की, गहरा प्यार है इनमें
रिश्ते की बुनियाद पद और पैसे से नहीं बनती
ब्रह्मा के होटल वाले से मेरा सिर्फ सिर्फ़ तीन रुपए का रिश्ता है हर सुबह सिर्फ सिर्फ़ तीन रुपए की चाय का उसका कोई बड़ा ग्राह्क भी नहीं हूं हूँ
दुनियादारी के हिसाब से
उसकी न तो मुझसे कोई बराबरी
फिर भी रिश्ता है
गहरा रिश्ता, आदमीयत का
हर सुबह सिर्फ सिर्फ़ तीन रुपए की चाय ने मुझे उससे गहरे जोड़ रखा है इतना गहरा कि पांच पाँच सितारा होटल की हर चीज चीज़ फीकी है उसके सामने
यही है रिश्ते की गहराई, यही है रिश्ते की बुनियाद
रिश्ते पैसे से नहीं बनते कस्तूरीमृग!
रिश्ते रंग से नहीं बनते
दिल का रिश्ता हर रिश्ते से बड़ा है, हर रिश्ते से ऊपर
खून ख़ून के रिश्ते से भी कहीं ज्यादा भरोसेमंद, कहीं अधिक टिकाऊ
दिल कभी अमीर-गरीब नहीं होता मृगनयनी !
ये तृण तो तेरे ही हैं, उगे हैं सिर्फ सिर्फ़ तेरे लिएदेखो इनकी हरियाली, देखो इनकी ताजगी ताज़गी महसूसो इनका स्वाद, सपनों के पंख लग जाएंगे जाएँगे ये कभी पराए नहीं लगेंगे तुम्हें।तुम्हें ।</poem>