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अगहन में / श्याम नारायण मिश्र
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,
15:16, 23 मई 2011
सरसों के
छौंक की
सुगंध
सुगँध
,मक्के में
गुंथा
गुँथा
हुआ स्वाद,
गुरसी में
तपा हुआ गोरस,
हाथों के कते-बुने
कम्बल के नीचे,
कथा और
किस्से
क़िस्से
,
हुंकारी
हुँकारी
के ताल;
एक ओर ममता है, एक और रति है,
अनिल जनविजय
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