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लौटना है हमें अपनी जड़ों में
 
जैसे लौटती है कोई चिड़िया
 
अपने घोंसले में
 
दिन भर की परवाज़ से
 
जैसे लौटता है अंततः
 
चूल्हे पर खौलता हुआ पानी
 
उत्तप्त उफनता हुआ सागर
 
अपनी नैसर्गिक प्रशांति में
 
जैसे लौटता है
 
ऊंचे पहाड़ों से झरता हुआ पानी
 
आकाश में उमड़ता घुमड़ता हुआ
 
स्याह पानीदार बादल
 
धरती की आगोश में
 
-
 
चिड़ियों के घोंसले
 
आज भी सुरक्षित हैं
 
अपने आदिम स्वरूप में
 
क्योंकि वे आज भी
 
पेड़ जंगल नदी पहाड़
 
और तिनकों के ही गीत गाती हैं
 
नहीं बनातीं अब
 
घर की गोरैया भी
 
हमारे घरों में अपने घोंसले
 
क्योंकि हम नहीं लेते
 
उनकी छोटी-छोटी
 
खुशियों में कोई हिस्सा
 
अपने घरों में हम
 
नहीं जीते उनकी फ़ितरत
 
नहीं गाते उनके गीत उनकी भाषा
 
और क्योंकि पता है उन्हें
 
हमारे घरों के भीतर
 
दीवारों के बिना भी
 
बसते हैं कई कई और भी घर
 
एक दूसरे से पूरी तरह बेखबर
 
-
 
 
ऐसे में…
 
हमें तो डरना चाहिए
 
फसलों की जगह
 
खेतों में लहलहाती इमारतों से
 
आकाश और समुद्र को चीरते
 
जहाजों के भयावह शोर से
 
मंदिर मस्जिद गिरिजाघरों
 
में सदियों से जारी
 
निर्वीर्य मन्नतों दुआओं से जन्मे
 
मुर्दनी सन्नाटों से
 
सड़कों पर हमारे साथ
 
कदमताल करते खंभों
 
और बिजली के तारों से
 
जगमग रौशनी और
 
फलते फूलते दुनिया के बाज़ारों से
 
हां, मुझे डरना चाहिए
 
स्वयं अपने आप से
 
जैसे डरती है मुझसे
 
अचानक सामने पड़ जाने पर
 
मासूम-सी कोई चिड़िया