किसी शोक सभा में अब
जाना होगा तुम्हें
पूरी तरह बेफ़िक्र और तैयार
एक और शोक के लिए…
कह देना होगा तुम्हें
मासूम अपनी पत्नी
और असमय प्रौढ हो रहे
अपने बच्चों से…
समझदार हो
बहुत देर तक न लौटूं
तो समझ लेना…
इतना ही नहीं
कि तुम किसी क्षण
मारे जा सकते हो…
श्मशान या कब्रिस्तान
की शवयात्रा मेंतक पहुंचने के पहले रास्ते में खो सकती है
तुम्हारी लाश…
और खो सकते हैं
तुम्हारे शोक
तुम्हारे आंसू…
और तब तुम्हें
न कोई शोक हिला सकेगा
और न ही कोई सुख
तुम्हारे इस कठिन दौर में
नहीं होगा कोई
तुम्हारे संग
फिर भी तुम
निस्संग नहीं होगे
नहीं होगा अब
तुम्हारे सामने शोक
या सुख का कोई विकल्प
लेकिन तुम
निर्विकल्प भी नहीं होगे…</poem>