<Poem>
कोई चिट्ठी नहीं मिली अब तक
तुम्हारा फोन भी नहीं आया
कैसे समझूँ कि याद करते हो
वो अलग दौर था कुछ और ही ज़माना था
जब एक फोन भी नहीं था सारे घर में
आज हर हाथ में मोबाइल हुआ करता है
मैंने माना कि मेरा घर भी नहीं है लेकिन
मेरे पास जो कुछ है सब तुम्हारा है
रास्ता भूल कर तशरीफ अपने घर लाओ ।
कितने साल हो गये तुमको देखा ही नहीं
कितनी सदियाँ हुई तेरी आवाज़ सुनी थी
अब कभी तुमसे बात होगी तो
तेरी आवाज़ को तकसीम कर दूँगा मैं
अपने फाइल से चिपकाऊँगा छोटा टुकड़ा
और पहन लूँगा बड़ा टुकड़ा दोनों कानों में ।
तुम्हें पता ही नहीं दुनिया कितनी डेवलप है
अगर चाहो तो ‘ई-मेल’ भी कर सकते हो
बात हो सकती है ‘गूगल-टॉक’ के सहारे
मुझे लगता है बात करना ही नहीं चाहते हो
वरना इतनी भी फुर्सत नहीं मिलती होगी
कि डाल कर ‘एक का सिक्का’
पी सी ओ से फोन करो ।
तुम्हें पता ही नहीं शायद रिश्ता क्या है ?
और कैसे निभाये जाते हैं
‘ब्लॉग’ मेरा कभी पढ़ा तुमने ?
कि जिसमें ज़िक्र है तुम्हारा भी
मैंने लिखी है कई नज़्में तुम्हारी ख़ातिर
मैं तुमको याद बहुत करता हूँ ।
कैसे समझाऊँ कि मेरे लगते क्या हो ?
जब भी देखी तेरी तस्वीर अपनी एलबम में
लगा कि सामने रखी है मेरी रूह जैसे
और खुल गया है जिस्म दरीचे की तरह
मैं एलबम को बार-बार देखता हूँ ।
<Poem>