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<poem>राजा गुस्से में हैं
उसकी इच्छा थी
छाया रहे अंधकार
बावजूद हुआ सूर्योदय
उसने चाहा था वर्षा न हो आज
आकाश बरसता रहा सारा दिन
उसकी मर्ज़ी थी पसरे श्मशान सा सन्नाटा
चहकती रही चिडिया लगातार
उसका मन था प्रजा दे सलामी
हो गए सभी दंडवत बच्चो को छोड़ कर
राजा गुस्से में हैं
नहीं मानता कोई उसकी बात
अलावा गुलामों के
राजा जान चुका हैं अपनी औकात
और अपना भविष्य भी </poem>
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