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और टूटी बाँसुरी होना / कुमार रवींद्र
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17:03, 25 मई 2011
वनैले जंतुओं की
ऐसा ही
हो
रहा है
हर तरफ माहौल भय का
यही सच है
वह चुक चुकी है
महासमरों की पुरानी अनी
पाँवों में
भूँकी
भुँकी
है
प्रश्न भी
अनिल जनविजय
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