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मेरे कमरे के कोने में अब भी रोज़ाना / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
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16:00, 26 मई 2011
<poem>
मेरे कमरे के कोने में अब भी रोज़ाना
साँस लेती है तेरी एक
अधुरी
अधूरी
करवट
स्याह रात के जंगल में प्यास नंगी है
</poem>
अनिल जनविजय
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