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ज़िंदगी की चादर / अलका सिन्हा
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15:48, 28 मई 2011
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|रचनाकार=अलका सिन्हा
|संग्रह=
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<poem>
ज़िन्दगी को जिया मैंने
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़
जाए।
जाए ।
</poem>
अनिल जनविजय
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