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{{KKRachna
|रचनाकार=अलका सिन्हा
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<poem>
ज़िन्दगी को जिया मैंने
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाए।जाए ।
</poem>
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