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दु:ख की चादर समेट बाहों में / अशोक आलोक
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07:34, 5 जून 2011
ख्वाब देखे हैं इश्तिहारों में
चंद सांसों की ज़िन्दगी अपनी
रोज
रोज़
उड़ती है ये हवाओं में
बात इतनी हसीन मत करिए
चाँद आने लगा है ख्वाबों में
योगेंद्र कृष्णा
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