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शिकवा / इक़बाल

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क्या तेरे नाम पे मरने के एवज़ भारी है ?
बनी अगियार की अब चाहने वाली दुनियारह गई अपने लिए एक खयाली ख़याली दुनिया
हम तो रुक़सत हुए, औरों ने संभाली दुनिया
फ़िर न कहना कि दुनिया तोहीद हुई तौहीद से खाली हुई दुनिया
हम तो जीते हैं कि दुनिया में तेरा नाम रहे
तेरी महफिल भी गई चाहनेवाले भी गए
शब की आहें भी गईं, जुगनूं के नाले भी गए
दिल तुझे दे भी गए ,अपना सिला ले भी गएआके बैठे भी न थे और गिला ले निकाले भी गए
आए उश्शाक, गए वादा-ए-फरदा लेकर
दर्द-ए-लैला भी वहीं, क़ैस का पहलू भी वही
नज्द के दश्त-ओ-जबल में रम-ए-आहू भी वही
इश्क़ का दिन दिल भी वही, हुस्न का जादू भी वही
उम्मत-ए-अहद-मुरसल भी वही, तू भी वही
अपने शहदारो पर ये चश्म -ए-ग़ज़ब क्या
तुझकों छोड़ा कि रस्मरसूल-ए-अरबी को छोड़ाबुतगरी पेशा किया, बुतशिकनी को छोड़ा?इश्क को, इश्क़ की आसुक्ताशरी आशुक्तासरी को छोड़ा
रस्म-ए-सलमानो-कुवैश-ए-करनी को छोड़ा
इश्क़ की ख़ैर, वो पहली सी अदा भी न सही
ज्यादा पैमाई तस्लीम-ए-तस्लीम-ओ-रिज़ा भी न सही ।
मुज़्तरिब दिल सिफ़त-ए-ख़िबलानुमा भी न सही
और पाबंदी ए आईना ए वफ़ा भी न सही ।
इक इशारे में हज़ारों के लिए दिल तूने ।
आतिश अंदोश किया इश्क़ का हासिल तूने
फ़ूँक दी गर्मी-ए-रुक्सार रुख्सार से महफिल तूने
आज क्यूँ सीने हमारे शराराबाज़ नहीं
हम वह वही शोख़ सा दामां, तुझे याद नहीं ? वादी ए नज़्द में वो शोर-ए-सलासिल न रहाकैस दीवाना-ए-नज्जारा-ए-महमिल न रहाहोसले वो न रहा, हम न रहे, दिल न रहाघर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-महफ़िल न रहा । ऐ ख़ुसारू कि आइ-ए-बशद नाजाईदे हिजाब-ए-महफ़िल-ए-माबाई वादाकश ग़ैर हैं गुलशन में लब-ए-जू बैठेसुनते हैं जाम बकफ़ नग़मा-ए-कू-कू बैठेदूर हंगामा-ए-गुल्ज़ार से यकसू बैठेतेरे दीवाने भी है मुंतज़र-ए-तू बैठे । अपने परवाने को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी देक़ौम-ए-आवारा इनाताब है फिर  ले उड़ा बुलबुल-ए-बेपर को मदाके परवाजतू ज़रा छेड़ तो दे तश्ना -ए-मिज़राज़ साज नगमें बेताब है तारों से निकलने के लिए मुश्किलें उम्मते मरदूम की आसां कर दे ।नूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे । हिन्द के नशीनों को मुसल्मान कर दे हसरतें तेरी न ईमामबू-ए-गुल ले गई बेरूह-ए-चमनक्या क़यामत है अहद-ए-गुल ख़त्म हुआएक बुलबुल है कि है महव-ए-तरन्नुम अबतक । पत्तिया फूल की झड़-झड़ की परेशा भी हुईडालियां महरूम लुत्फ़ मरने में है बाक़ी न
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(कविता ख़त्म नहीं हुई और इसमें बहुत अशुद्धियाँ है । इन्हें शब्दार्थों के साथ शीघ्र ही सुधारा जाएगा । सहयोग का स्वागत है।)
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