क्यूँ ज़ियाकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फर्दा <ref>कल की चिन्ता</ref> न करूँ, महव<ref>खोया रहना</ref>-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
नाले बुलबुल की सुनूँ और हमअतंगोश रहूँ
हमनवाँ मैं भी कोई गुल हूँ के ख़ामोश रहूँ ।
फ़िक्र-ए-फ़र्दा - कल की चिन्ता । महव - खोया रहना ।
जुरत-आमोज़ मेरी ताब-ए-सुख़न है मुझको
हमसे पहले था अजब तेरे जहाँ का मंजर
कहीं थे मस्जूद <ref>पूज्य (जिसका सजदा किया जाय), शज़र</ref> ते पत्थर, कहीं माबूद <ref>पूज्य</ref> शजर
खूगर-ए-पैकर-ए-महसूस थी इंसा की नज़र
मानता फ़िर कोई अनदेखे खुदा को कोई क्यूंकर
मअबूद - पूज्य, मस्जूद - पूज्य (जिस्का सजदा किया जाय), शज़र
तुझको मालूम है लेता था कोई नाम तेरा
कुव्वत-ए-बाज़ू-ए-मुस्लिम ने किया काम तेरा
बस रहे थे यहीं सल्जूक <ref>उत्तरपश्चिमी ईरान और पूर्वी तुर्की में दसवीं सदी का एक साम्राज्य, शासक तुर्क मूल के थे</ref> भी, तूरानी भी ।अहल-ए-चीं चीन में, ईरान में सासानी <ref>अरबों की ईरान पर फ़तह के ठीक पहले के शासक, अग्निपूजक पारसी, अमुस्लिम</ref> भी ।
इसी मामूरे में आबाद थे यूनानी भी ।
इसी दुनिया में यहूदी भी थे, नसरानी भी ।
सल्जूक - उत्तरपश्चिमी ईरान और पूर्वी तुर्की में दसवीं सदी का एक साम्राज्य, शासक तुर्क मूल के थे । सासानी - अरबों की ईरान पर फ़तह के ठीक पहले के शासक, अग्निपूजक पारसी, अमुस्लिम ।
पर तेरे नाम पर तलवार उठाई किसने ?
थे हमीं एक तेरे मार का आराओं में ।
खुश्कियों में कभी लड़ते, कभी दरियाओं में ।
दी अज़ानें कभी योरोप के कलीशाओं <ref>चर्च, गिरिजाघर</ref> में ।कभी अफ़्रीक़ा के तपते हुए सेहराओं <ref>रेगिस्तान</ref> में । कलीशा - चर्च, गिरिजाघर । सेहरा - रेगिस्तान ।
शान आँखों में न जँचती थी जहाँदारों की
कलेमा <ref> ये कहना कि 'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका संदेशवाहक था', इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रयुक्त वंदनवाक्य</ref> पढ़ते थे हम छाँव में तलवारों की ।
कलेमा - ये कहना कि 'अल्लाह एक है और मुहम्मद उसका संदेशवाहक था', इस्लाम का सबसे ज्यादा प्रयुक्त वंदनवाक्य ।
हम जो जीते थे, तो जंगों की मुसीबत के लिए
और मरते थे तेरे नाम की अज़मत के लिए ।
थी न कुछ तेग़ ज़नी अपनी हुकूमत के लिए
सर बकफ़ <ref> हथेली पर</ref> फिरते थे क्या दहर में दौलत के लिए ? बकफ़ - हथेली पर
कौम अपनी जो ज़रोमाल-ए-जहाँ पर मरती
पाँव शेरों के भी मैदां से उखड़ जाते थे ।
तुझ से हर कश हुआ कोई तो बिगड़ जाते थे
तेग <ref>तलवार</ref> क्या चीज़ है, हम तोप से लड़ जाते थे ।
तेग़ - तलवार नक़्श तौहीद <ref>त'वाहिद, एकत्व. यानि ये कहना कि अल्लाह एक है और उसके स्वरूप, तस्वीर, मूर्तियां या अवतार नहीं हैं, अरबी गिनती में वाहिद का अर्थ 'एक' होता है ।</ref> का हर दिल पे बिठाया हमने
तेरे ख़ंज़र लिए पैग़ाम सुनाया हमने ।
तौहीद तू ही कह दे के, उखाड़ा दर- त'वाहिदए-ख़ैबर<ref>उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान में पेशावर के पास का दर्रा जिससे होकर कई विदेशा आक्रांता भारत आए; सिकंदर, एकत्व. यानि ये कहना कि अल्लाह एक है बाबर और उसके स्वरूपनादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं ।</ref> किसने?शहर कैसर<ref>सीज़र का अरबी नाम, तस्वीरसीज़र रोम के शासक की उपाधि होती थी</ref> का जो था, मूर्तियां या अवतार नहीं हैंउसको किया सर किसने?तोड़े मख़्लूक ख़ुदाबन्दों के पैकर<ref>आकृति, अरबी गिनती में वाहिद स्वरूप</ref> किसने?काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार<ref>काफ़िर का अर्थ 'एक' होता है ।बहुवचन</ref> के लश्कर<ref>सेना</ref> किसने?
तू ही कह दे के, उखाड़ा दर-ए-ख़ैबर किसने?शहर कैसर का जो थाठंडा किया आतिशकदा<ref>अग्निगृह, उसको किया सर किसने?तोड़े मख़्लूक ख़ुदाबन्दों इस्लाम के पैकर किसने?काट कर रख दिये कुफ़्फ़ार पूर्व ईरान के लश्कर किसने? ख़ैबर - उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान में पेशावर के पास का दर्रा जिससे होकर कई विदेशा आक्रांता भारत आए; सिकंदर, बाबर लोग आग और नादिर शाह इनमें से कुछ उल्लेखनीय नाम हैं । कैसर देवी- सीज़र का अरबी नाम, सीज़र रोम के शासक देवताओं की उपाधि होती थी । पैकर - आकृति, स्वरूप । कुफ़्फ़ार - काफिरों । लश्कर - सेना । किसने ठंडा किया आतिशकदापूजा करते थे</ref>-ए-ईरां को ?
किसने फिर ज़िन्दा किया दज़तराए-ए-यज़दां को ?
आतिशकदा - अग्निगृह, इस्लाम के पूर्व ईरान के लोग आग और देवी-देवताओं की पूजा करते थे । कौन सी क़ौम फ़क़त <ref> सिर्फ़</ref> तेरी तलबगार हुई ?
और तेरे लिए जहमतकश-ए- पैकार हुई ?
किसकी शमशीर <ref>तलवार</ref> जहाँगीर, जहाँदार हुई ?
किसकी तक़दीर से दुनिया तेरी बेदार हुई ?
फ़कत - सिर्फ़ । शमशीर - तलवार ।
किसकी हैमत से सनम सहमे हुए रहते थे ?
</poem>
(कविता ख़त्म नहीं हुई और इसमें बहुत अशुद्धियाँ है । इन्हें शब्दार्थों के साथ शीघ्र ही सुधारा जाएगा । सहयोग का स्वागत है।)
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