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शिकवा / इक़बाल

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अपनी बगलों में दबाए हुए क़ुरान गए ।
अंददन ज़िंदाज़न कुफ़्र है, एहसास तुझे है कि नहीं
अपनी तौहीद का कुछ फाज तुझे है कि नहीं?
और बेचारों मुसलमानों को फ़कत वाबा-ए-हुज़ूर
अब वो अल्ताफ़ नहीं, हमपे नायास इनायात महीं
बात ये क्या है कि पहली सी मुदारात नहीं ?
उम्मत-ए-अहद-मुरसल भी वही, तू भी वही
फ़िर ये आज गुस्तगी, ये ग़ैर-ए-सबब क्यामानीअपने शहदारो पर ये चश्म -ए-ग़ज़ब क्यामानी
तुझकों छोड़ा कि रसूल-ए-अरबी को छोड़ा
वादी ए नज़्द में वो शोर-ए-सलासिल न रहा
कैस दीवाना-ए-नज्जारा-ए-महमिल न रहा
होसले वो न रहारहे, हम न रहे, दिल न रहा
घर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-महफ़िल न रहा ।
ऐ ख़ुसारू कि आइ--बशद नाजाईदे हिजाबहिजाबां न सू-ए-महफ़िल-ए-माबाई
वादाकश ग़ैर हैं , गुलशन में लब-ए-जू बैठेसुनते हैं जाम बकफ़ , नग़मा-ए-कू-कू बैठे
दूर हंगामा-ए-गुल्ज़ार से यकसू बैठे
तेरे दीवाने भी है मुंतज़र-ए-तू बैठे ।
अपने परवाने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी देक़ौमबर्के तेरी ना वो फ़रमान-ए-आवारा इनाताब है फिर जिगर चोरी दे दे
क़ौम-ए-आवारा इनाताब है फिर सू-ए-हिजाज
ले उड़ा बुलबुल-ए-बेपर को मदाके परवाज
मुज़्तरिब गाग़ के हर गुंचे में है
तू ज़रा छेड़ तो दे तश्ना -ए-मिज़राज़ साज
नगमें बेताब है तारों से निकलने के लिए
दूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए ।
मुश्किलें उम्मते मरदूम की आसां कर दे ।
नूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे ।
इनके नायाब-ए-मुहब्बत को फ़िर अरज़ां कर दे
हिन्द के नए नशीनों को मुसल्मान कर दे ।
हिन्द के नशीनों को मुसल्मान कर दे
जू-ए-ख़ूनी चकदत हसरतें तेरी न ईमाममीतकत नाला बनिश्तर कदा-ए- बू-ए-गुल ले गई बेरूह-ए-चमन राज़-ए-चमनक्या क़यामत हैकि ख़ुद भूल है चमनअहद-ए-गुल ख़त्म हुआ टूट गया साज़-ए-चमनउड़ गए जमजमा परदा-ए-चमन ।
अहद-ए-गुल ख़त्म हुआ
एक बुलबुल है कि है महव-ए-तरन्नुम अबतक ।
इसके सीने में हैं नग़मों का तलातुम अबतक ।
 
कुमरियां साख़-ए-सनोवर से गुरेज़ां भी हुई ।
पत्तिया फूल की झड़-झड़ की परीशां भी हुई ।
वो पुरानी रविशें बाग़ की वीरां भी हुई ।
डालियां पैरहन-ए-बर्ग से उरियां भी हुई ।
 
क़ैद ए मौसम से तबीयत रही आज़ाद उसकी ।
काश गुलशन में समझता कोई फ़रियाद उसकी ।
 
लुत्फ़ मरने में है बाक़ी, न मज़ा जीने में
कुछ मज़ा है तो यही ख़ून-ए-जिगर सीने में ।
कितने बेताब हैं जौहर मेरे आईने में
किस क़दर जल्वे तड़पते है मेरे सीने में ।
 
इस गुलिस्तां में मगर देखने वाले ही नहीं ।
दाग़ जो सीने में रखते हैं वो लाले ही नहीं ।
 
चाक इस बुलबुल ए तन्हा की नवां से दिल हों
जागने वाले इसी बांग-ए-दरा से दिल हों ।
यानि फ़िर ज़िन्दा ना अहद-ए-वफ़ा से दिल हों
फिर उसी बादा ए तेरी ना के प्यासे दिल हों ।
 
अजमी ख़ुम है तो क्या, मय तो हिजाज़ी है मेरी ।
नग़मा हिन्दी है तो क्या, लय तो हिजाज़ी है मेरी ।
पत्तिया फूल की झड़-झड़ की परेशा भी हुई
डालियां महरूम
लुत्फ़ मरने में है बाक़ी न
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(कविता ख़त्म नहीं हुई और इसमें में बहुत सी अशुद्धियाँ है । इन्हें शब्दार्थों के साथ शीघ्र ही सुधारा जाएगा । सहयोग का स्वागत है।)
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