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आँखें भरी-भरी मेरी कुछ और नहीं है / गुलाब खंडेलवाल
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13:27, 14 जून 2011
जो चाहे समझ लीजिये, मरज़ी है आपकी
माना
गाना
है बेबसी मेरी, कुछ और नहीं है
क्यों फेर दी है उसने पँखुरियाँ गुलाब की
है इसमें दोस्ती मेरी, कुछ और नहीं है
<poem>
Vibhajhalani
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