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आदमी भीतर से भी टूटा हुआ लगता है आज / गुलाब खंडेलवाल
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13:49, 14 जून 2011
जिन्दगी, शीशा तेरा फूटा हुआ लगता है आज
हर नज़र खामोश
अहि.
है,
हर घर से उठता है धुँआ
यह शहर का शहर ही लूटा हुआ लगता है आज
Vibhajhalani
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