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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
किसी का प्यार समझें, दिल्लगी समझें, अदा समझें
बता दे तू दे अब, ऐ जिन्दगी! हम तुझको क्या समझें
नहीं हटाता है पला भर लाज का परदा उन आँखों से
इशारों में ही दिल की बात हम कैसे भला समझें!
हम अपने को भी उनकी धड़कनों में देख लेते हैं
उन्हीं के हम हैं, वे हमको भले ही दूसरा समझें
दिया जो आपने आकर कभी दिल में जलाया था
दिया वह आँधियों से लड़ते-लड़ते बुझ गया समझें
गुलाब ऐसे तो हर तितली से आँखें चार करते हैं
जो दिल की पंखडी छू ले उसीको दिलरुबा समझें
<poem>