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अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है / गुलाब खंडेलवाल
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20:03, 6 जुलाई 2011
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
तारों को
देख कर
देखकर
ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
मैं
जिन्दगी
ज़िन्दगी
को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बादसुनता हूँ,
उनको
उन्हें
इसकी ज़रूरत भी हुई है
दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
Vibhajhalani
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