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12:08, 17 जून 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>
1-मौन-साधना ,
अपने आप मेँ ,
बडा तप है ।
2-मौन-सागर का,
कोइ निश्चित ,
मापदँड नहीँ होता।
3-मौन साधक को,
अक्सर लोग
उस व्यक्ति की,
कमजोरी समझ लेते हैँ।
4-मौन रहकर भी,
सम्वाद होते हैँ।
5-मौन-निमँत्रण को,
बिरले ही कोइ
समझ पाता है।
6- मौन की अपनी,
अनुपम अभिव्यक्ति होती है,
जो किसी भाषा की,
मोहताज नहीँ होती।
7-मौन-सागर मेँ भी,
ज्वार-भाटा उठते हैँ।
8-मौन अहँकार को,
कम करता है।
9-झूठ बोलने से ,
अच्छा है,
मौन रह जाना।
10-मौन की साधना,
साधु-सँत भी,
नहीँ कर पाते।
<poem>