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12:17, 20 जून 2011 <poem>
कान पङा लिये जोग ले लिया, इब गैल गुरु की जाणा सै ।
अपणे हाथां जोग दिवाया इब के पछताणा सै ॥
धिंग्ताणे तै जोग दिवाया मेरे गळमैं घल्गि री माँ,
इब भजन करुँ और गुरु की सेवा याहे शिक्षा मिलगी री माँ ।
उल्टा घरनै चालूं कोन्या जै पेश मेरी कुछ चलगी री माँ,
इस विपदा नै ओटूंगा जै मेरे तन पै झिलगी री माँ॥
तन्नै कही थी उस तरियां तै इब मांग कै टुकङा खाणा सै ।
अपणे हाथां जोग दिवाया इब के पछताणा सै ॥
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