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खड़े हुए थे अँधेरे तो दोनों ओर मगर
किरणकिरन-कीं किरन की सवारी में सौ गुलाब खिले
जहां था प्यार नज़रबंद आँसुओं से कभी
उसी चहारदीवारी में सौ गुलाब खिले
जतन से ओढ़ के चादर तो ज्यों-की-त्यों रख धर दी
मगर कहीं थे किनारी में सौ गुलाब खिले
<poem>
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