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<poem>
नज़र नज़र से ही टकराए टकराये और कुछ मत हो
कभी तो हमसे वो शरमाये, और कुछ मत हो
मिलो कहीं तो निगाहों से पूछ भर लेना
ज़रा-सा होंठ ही थर्राएथर्राये, और कुछ मत हो
मिली है एक ही जीवन में यह बहार की रात
बुला लिया है उसे घर पे हमने आज, मगर
मना रहे हैं नहीं आयेंआये, और कुछ मत हो
गुलाब देख तो लेंगे उन्हें आते-जाते
नज़र भले ही न मिल पाएपाये, और कुछ मत हो
<poem>
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