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04:02, 28 जून 2011 {{KKGlobal}}
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रूप घनाक्षरी
(शांतिमय वन-वर्णन)
सीतल-समीर मंद हरत मरंद-बुंद, परिमल लीन्हैं अलि-कुल छबि छहरत ।
कामबन, नंदन की उपमा न देत बनैं, देखि कैं बिभव जाकौ सुर-तरु हहरत ॥
त्यागि भय-भाव चहूँ घूँमत अनंद भरे, बिपिन-बिहारिन पैं सुख-साज लहरत ।
कोकिल, चकोर, मोर करत चहूँघाँ सोर, केसरी-किसोर बन चारौं ओर बिहरत ॥१०॥
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