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02:24, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=हौंन लागे सोर चहुँ ओर प्रति कुंजन मैं / शृंगार-लतिका / द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
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भुजंगप्रयात
(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)
सबै फूल फूले, फबे चारु सोहैं । भँवैं भौंर भूले, भले चित्त-मोहैं ॥
बहै मंद-ही, मंद-ही, बायु रूरे । सुबासैं, सबै भाँति-सौं सोभ-पूरे ॥१७॥
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