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<poem>
'''भुजंगप्रयात'''
''(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''

कहूँ कोकिलाली, कहूँ कै पुकारैं । चकोरौ कहूँ सब्द ऊँचे उचारैं ॥
कहूँ चातकी सातकी-भाव लीन्हैं । जकी-सी, चकी-सी, चहूँ चित्त दीन्हैं ॥१९॥
</poem>
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