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02:42, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=नहीं नव अंकुर ए सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
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<poem>
'''मौक्तिकदाम'''
''(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
पलास-प्रसून किधौं नख-दाग । किधौं प्रगट्यौ छिति कौं अनुराग ॥
छए चहुँघाँ छबि-मंजु पराग । जिन्हैं लखि भाजि गयौ रबि-राग ॥२३॥
</poem>