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यों तो उन नज़रों में है जो अनकहा, समझे हैं हम / गुलाब खंडेलवाल
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20:32, 30 जून 2011
बेलिखे ही उसने जो कुछ लिख दिया, समझे हैं हम
प्यार की
मंजिल
मंज़िल
तो है इस
बेखुदी
बेख़ुदी
से दो क़दम
सैंकडों कोसों का जिसको फासला समझे हैं हम
आँखों-आँखों में इशारा कर के
आँखों
आँखें
मूँद
ली
लीं
रुक के दम भर पूछ तो लेते कि क्या समझे हैं हम!
Vibhajhalani
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