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फिर भी दिल को है उसी बेरहम की चाह बहुत
हमने माना कि खुशी ख़ुशी आपको होती इसमें हैं मगर आपकी खुशियों ख़ुशियों से हम तबाह बहुत
क्या हुआ अब जो इधर रुख रुख़ नहीं करता कोई
चाह है तो मिलेगी बंदगी की राह बहुत
हाय! उस दूध की धोई नज़र का भोलापन!
सैंकडों सैकड़ों खून भी करके है बेगुनाह बहुत
यों तो उस दिल में बसी आपकी सूरत ही, गुलाब!
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