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कोई ऊँची अटारी पे बैठा रहा, हाय! हमने उसे क्यों पुकारा नहीं! / गुलाब खंडेलवाल
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20:12, 1 जुलाई 2011
जो अभी डूबता देखकर भी हमें, एक तिनके का देते सहारा नहीं
वार दुनिया के हँस-हँसके झेला किया, हमने दुश्मन न समझा
किसी को
किसीको
कभी
जिनको अपना समझते थे दिल में मगर, बेरुख़ी आज उनकी गवारा नहीं
Vibhajhalani
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