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जो जीवन में दुख की घटा बन गयी है / गुलाब खंडेलवाल
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04:23, 2 जुलाई 2011
मगर बढ़ते-बढ़ते सभा बन गयी है
नज़र खोई-खोई,
कदम
क़दम
लड़खड़ाये
तुम्हारी भी यह क्या दशा बन गयी है!
Vibhajhalani
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