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हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय / गुलाब खंडेलवाल
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13:52, 2 जुलाई 2011
हमारी रात अँधेरी से चाँदनी बन जाय
ज़रा सा
रुख
रुख़
तो मिलाओ कि ज़िन्दगी बन जाय
वे और होते हैं जिनसे कि बंदगी बन जाय
Vibhajhalani
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