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15:10, 3 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
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{{KKPageNavigation
|पीछे=फूले घने, घने-कुंजन माँहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=तातैं हृदै-सँभारि, हरि-राधा को किन सुजस / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
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'''मत्तगयंद सवैया'''
''(बुद्धिस्थिता भगवती के वचन-व्याज से श्री राधिका की स्तुति)''
ऐसैं बिचारत हीं मति मेरी, प्रबोधि कहे अखरा मन-भाए ।
ह्वै है कहा ’द्विजदेव’ जू लाहू, इतौ उर-अंतर सोच-बढ़ाए ॥
राधिका जू के बिहार के काज, सबै बिधि सौं सुखमा उपजाए ।
वे नित ही के सँघाती बसंत, अपूरब बेस बनाइ कैं आए ॥३५॥
</poem>