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तलब ग़म की ख़ुशी से बढ़ गयी है / गुलाब खंडेलवाल
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22:33, 3 जुलाई 2011
गुलाब! ऐसे भी क्या कम थी ये दुनिया!
मगर रौनक़
तुम्हीं से
तुम्हींसे
बढ़ गयी है
<poem>
Vibhajhalani
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