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ख़त्म उनपर हैं सभी शोख़ियाँ ज़माने की / गुलाब खंडेलवाल
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23:01, 3 जुलाई 2011
है वही शोख़ हँसी मुँह पे शमा के अब भी
फर्क
फ़र्क
आया न कोई मौत से परवाने की
कौन होगा तेरी गलियों में हम-सा ख़ानाख़राब
और दो-चार घड़ी खेल उन आँखों में, गुलाब!
फिर मिलेगी न तुझे रात
परीखाने
परीख़ाने
की
<poem>
Vibhajhalani
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