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बरगद / भारतेन्दु मिश्र

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अनगिनत आए पखेरू
थके माँदे द्वार पर
उड़ गए अपनी दिशाओं मे में
सभी विश्राम कर
मैं अडिग-निश्चल-अकम्पित हूँ