<td rowspan=2>
<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : सपने अदावत दिल में रखते हैं ('''रचनाकार:''' [[रणजीतवीरेन्द्र खरे 'अकेला' ]])</div>
</td>
</tr>
</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
भई गुड्डन, यह कौन सा तरीका हुआअदावत दिल में रखते हैं मगर यारी दिखाते हैंजब तुम्हें मेरे पास रहना नहीं हैतो मेरा पीछा छोड़ोक्यों नाहक मुझे परेशान करती रहती होन जाने लोग भी क्या क्या अदाकारी दिखाते हैं
आना हो तो आओ पूरी तरह यक़ीनन उनका जी भरने लगा है मेज़बानी सेनहीं तो वहीं रहो मजे मेंयह क्या बात वो कुछ दिन से हमें जाती हुईकि दिन-दहाड़े सबके सामने तो कहोकि मम्मी के पास ही रहना है मुझेऔर रातों में चुपचाप चली आओ यहाँऔर फिर यह तो भई हद हैजानबूझ कर दुःखी करने की बात हैकि भटकता रहूँ मैं सारी रात तुम्हारे साथस्मृतियों और संभावनाओं के बियाबानों मेंऔर सवेरा होते-होते अदृश्य हो जाओ तुमबिना कुछ कहे सुनेलारी दिखाते हैं
पापा उलझना है हमें बंजर ज़मीनों की हक़ीक़त सेउन्हें क्या, वो तो बस काग़ज़ पे फुलवारी दिखाते हैं मदद करने से पहले तुम हक़ीक़त भी परख लेनायहाँ पर आदतन कुछ लोग लाचारी दिखाते हैं डराना चाहते हैं वो हमें भी धमकियाँ देकरबड़े नादान हैं पानी को इस तरह चिन्गारी दिखाते हैं दरख़्तों की हिफ़ाज़त करने वालो डर नहीं सतातेजानादिखाने दो, बेटेअगर कुछ सरफिरे आरी दिखाते हैंअब बार-बार तुम्हें ढूँढ़ने कीहिमाक़त क़ाबिले-तारीफ़ है उनकी हिम्मत नहीं ‘अकेला’जीहमीं से काम है । हमको ही रंगदारी दिखाते हैं
</pre></center></div>