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17:05, 5 जुलाई 2011 {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>
हमने तो सदा ऐतबार किया था तुमपे,
हमने तो खरा प्यार किया था तुमसे,
तुम्हीं न कर सके इकरार कभी,
हमने तो बार-बार इज़हार किया था तुमसे।
हमारे प्यार की है इल्तिज़ा तुझसे,
हमारे प्यार की है इम्तिहां तुझसे,
हमारा प्यार है गहरा कई समन्दर से,
हमारे प्यार की है इन्तिहां तुझसे।
हमारा प्यार है जहाँ वहीं सवेरा है,
हमारा प्यार है जहाँ वहीं बसेरा है,
हमारे प्यार की खुश्बू ज़मीं से अंबर तक,
हमारा प्यार जहाँ चंद्रमा का ढ़ेरा है।
हमारे प्यार के खातिर ही सूर्य उगता है,
हमारे प्यार के खातिर ही चाँद ढ़लता है,
हमारे प्यार से सारा चमन महक जाए,
हमारे प्यार के खातिर भ्रमर मचलता है।
<poem>