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00:43, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=या बिधि बहु-लीला रचैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=तब तजि संभ्रम-भास / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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<poem>
'''सोरठा'''
''(कवि की प्रस्ताविक उक्ति अपने प्रति)''
कौन कहाँ को राव, कहा बापौरे सुरभि मैं ।
नाँहक करि चित-चाव, कत बसंत बरनन करौ ॥५०॥
</poem>